Saturday 13 December 2014

गुमनाम

युहिं बहता चला मैं इन लहारोंमे ।
पतवार भी खोई ही कहि नहरोंमे ।
अब तो वो चांद भी है कही पहरोंमे । 
बस मैं ही गुम होता रहा इन नए शहरोंमें ॥ 
-सिद्धेश्वर

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