युहिं बहता चला मैं इन लहारोंमे ।
पतवार भी खोई ही कहि नहरोंमे ।
अब तो वो चांद भी है कही पहरोंमे ।
बस मैं ही गुम होता रहा इन नए शहरोंमें ॥
-सिद्धेश्वर
पतवार भी खोई ही कहि नहरोंमे ।
अब तो वो चांद भी है कही पहरोंमे ।
बस मैं ही गुम होता रहा इन नए शहरोंमें ॥
-सिद्धेश्वर
No comments:
Post a Comment