Tuesday 8 December 2015

गुफ्तगु

कल रात खुदा से हमारी गुफ्तगु हुई।
कुछ बाते हमने कही कुछ उसकी दिल को छुई।

राज तो बहोत थे इस फराजके पर कुछ हमने खुदासेभी छूपाकर रखे थे।
कुछ अल्फाजोंमे बयां हो गये कुछ उसने आंखोसे पढ़ लिये।।

गलतीया तो की थी हमने शायद कुछ गुनाह़ भी।
सज़दे तो हम हरदिन करते है पर कभी माफीके लिये दुआ न की।

हमने तो बस हमारे गुनाहोकी सजा मांगी थी।
पर खुदाने रोते हुए कहा,
फराज, हमने तो प्यार करना तुमसेही सीखा है।

सुबहा जब निंद खुली कल खिले फूल को मुरझाते देखा।
पता चला के मुरादे पुरी करनेवाला वो खुदा नही खुद होता है।
-सिद्धेश्वर

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